Monday, June 27, 2011

Kashmakash...


किसी दिन मै किस्मत से नज़रें चुरा कर 
सजा दूँ जो सपने तुम्हारे सभी
तो तुम जान लोगे जो तुमने है सोची
मेरे मन में भी है तमन्ना वही...

कभी वक़्त से कुछ बहाना बना कर
बिताऊं जो तुम संग पूरी सदी
तो तुम जान लोगे जो तुम चाहते हो
मेरी भी है हर पल की चाहत वही.

तुम्हे डर है आगे की तनहा सड़क से
कदम जिनपे रखने पड़ेंगे कभी
मेरे भी कदम कप्कपयेंगे उस पल
मुझे भी सताता है डर बस वही...

कई दर्द हैं ज़िन्दगी में तुम्हारे
मुझे जिनका एहसास शायद नहीं
मगर तुमको कैसे बताऊँ मै जीता हूँ
बस जीतने को तुम्हारी ख़ुशी.

न दूरी की खुशबू में तुम सांस लोगे
ना साड़ी उम्र तुम जियोगे युहीं
मुझे भी तो होगी घुटन दूर तुमसे
मै कैसे दिलाऊं ये तुमको यकीन!

मैंने भी कितने हैं सपने संजोये
की तुम साथ होगे मेरे हर घड़ी
जो तुम जान लोगे मेरी कश्मकश को
तो देखोगे खुद ही को मुझमे कहीं...