एक आम आदमी, जो ज़िन्दगी और दुनिया से जुड़े हर पहलू के बारे में सोचता है, समाज को हर तरह से साफ़ करना चाहता है, सिर्फ प्यार से रहना और प्यार ही बाटना चाहता है. मगर सिर्फ सोचता ही रह जाता है. ये कविता शुरू से अंत तक सीरत एक आम आदमी की सोच बताती है.
जो चलती है ठंडी हवा सोचता हु,
जो होता हु खुद से खफा सोचता हु.
की ढल जाती है रात बस सोचने में
मगर फिर से अगली सुबह सोचता हु.
मै लिखता हु हर दिन फसाने नए से,
और हर रोज़ कविता नयी सोचता हु.
है शब्दों की दुनिया मगर उस फलक पे.
मै गिर क ज़मीन पे यही सोचता हु.
क्यूँ रिश्वत की दलदल से तन यु सना है
कभी देख अपना मकान सोचता हु.
हिला दू जो बुनियाद अपने ही घर की,
तो जाऊंगा फिर मै कहाँ सोचता हु.
दरारें हैं इन्सान के बीच की जो
क्या मज़हब उन्हें नाम दू सोचता हु.
मगर खून का रंग तो एक ही है,
तो हम सब में क्या है फरक सोचता हु.
मै करता हू पूजा झुकाता हू सर को,
हू इन्सान मै गर्व से सोचता हू
मगर देखता हू जो ईमान को बिकते,
कहाँ खोयी इंसानियत सोचता हू.
क्यूँ मरते हैं लोग और जलते हैं घर भी,
मिटा दू मै ये सरहदें सोचता हू
मगर दर सा जाता हू अगले ही पल जब
'अकेला करूँगा भी क्या' सोचता हू.
क्यूँ दुनिया से अब प्यार खो सा गया है,
बदल दू मै सारी दुनिया सोचता हू.
जो हर पल में मुझको है इतना बदलती,
क्या बदलेगी वो दुनिया सोचता हू.
मै ये सोचता हू मै वो सोचता हू.
मै हर मोड़ पर कुछ भला सोचता हू
मगर रात ढल जाती है उस सोच में ही,
और मै फिर से अगली सुबह सोचता हू.
ohhoo..stuffd with soo many thoughts..but dont think dat much as its "KALYUG" going on n "SATYUG" ene mein abhi kuch 150 years pade hai..so its all waste n dez thouts will leave u vd nothing bt a headache..so chill..!!
ReplyDelete:D
nice poem...pehli bar mene tera post pura padha ha..:P:P:P
ReplyDeletewell done....nicely kept thoughts...:):)
aur iske liye hindi se acha madhyam koi aur ho bhi nh skta...kyunki am insan hindi hi bolta ha aur hindi me hi sochta ha...ati uttam...:):)
Aap dono ko tahe dil se dhanyawad... :D:D:D
ReplyDeletebahut acha likha hai..... apni hi daastan daal di ho aisa lag raha hai..... end me kya moral nikal raha hai , ki itna saara sochne ke bad bhi kuch nahi ho raha , sirf sochta hi ja raha hai insan.... :P...:).. but nice work...
ReplyDeleteshi hai beeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee.....budhdhe........laalu ban gya gentleman
ReplyDeleteoyeeeeeee sochne k liye sauchalaya hai be,,,,,tu kahan kahan jaake sochta hai???
ReplyDeletei think this is the best of yours ,i have read till now..great work ,very nicely composed
ReplyDeletebas 1 suggestion last para 2nd line i think "bhala" ki jagah "naya" ho to it will sound better