हलकी धुप निकली ज़रा सी हवा चली...
आज सुभा जब हुई आँख जो खुली,
आँख जो खुली तोजैसे सांस थम गयी...
दिल की धडकनों पे जैसे बर्फ जम गयी...
जागती सी आँखों को यकीं भी न हुआ।
ख्वाब वो नहीं था धोखा नींद ने दिया...
पत्थरों का वो मकां भी पुच था रहा।
'अभी तू जाने था कहाँ अभी तू है कहाँ?'
ये बारिशों की बूंदों ने किस कदर जिस्म भिगो दिया,
अभी तो हलकी धुप थी अभी ये क्या हुआ?
अभी तो सर्द थी हवा, खुशबू से भरी,
अभी ये कैसी आंधियां हैं ला रही तूफ़ान...
अभी तो कहकहे थे हर तरफ, थी एक ख़ुशी।
अभी ये पल में कैसे ख़ामोशी सी छा गयी?
अभी तो साडी राहें जानी पहचानी सी थी...
अभी ये कौन रास्ते है ज़िन्दगी बढ़ी?
अभी लगी जो चोट दिल ने आह सी भरी,
वो दर्द चीन लेने वाली माँ कहा गयी?
अभी ज़रा सी बात पे आँखें झलक गयी...
वो आंसुओं को पोचती बेहें कहाँ गयी?
जिसकी हर शरारतों में प्यार था भरा,
मेरे दिल का हिस्सा, मेरा भाई कहा गया?
जो मेरी हर ख्वाहिश मेरे चेहरे पे पढता था...
और मेरे बिन कहे उन्ह्हे पूरा भी करता था।
वो पापा नाम का मसीहा कहाँ गया?
जिसकी हर एक ईट में मजबूती थी विश्वास की...
जिसकी नीव एक दूजे के दर्द का एहसास थी...
वो महल खुदा का जहा पर था बसेरा,
वो मेरी ज़िन्दगी, मेरा घर कहा गया?
वो मेरी ज़िन्दगी मेरा घर कहा गया?
This is my first morning in my hostel... A feeling of 'Home-sickness'....
ReplyDeleteya its so touching.......i m feeling every line of ur poem right now............. I M MISSING MY FAMILY...............
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